नयी-नयी पोशाक बदलकर, मौसम आते-जाते हैं,
फूल कहॉ जाते हैं जब भी जाते हैं लौट आते हैं।
शायद कुछ दिन और लगेंगे, ज़ख़्मे-दिल के भरने में,
जो अक्सर याद आते थे वो कभी-कभी याद आते हैं।
चलती-फिरती धूप-छॉव से, चहरा बाद में बनता है,
पहले-पहले सभी ख़यालों से तस्वीर बनाते हैं।
आंखों देखी कहने वाले, पहले भी कम-कम ही थे,
अब तो सब ही सुनी-सुनाई बातों को दोहराते हैं ।
कुछ रोते हैं, कुछ इस ग़म से अपनी ग़ज़ल सजाते हैं।
4 comments:
नयी-नयी पोशाक बदलकर, मौसम आते-जाते हैं,
फूल कहॉ जाते हैं जब भी जाते हैं लौट आते हैं।शायद कुछ दिन और लगेंगे, ज़ख़्मे-दिल के भरने में,
जो अक्सर याद आते थे वो कभी-कभी याद आते हैं। बहुत सुंदर लिखा है आपने ...भधाई
खुमारे ग़म की महकती फिज़ा में जीते हैं,
तेरे ख्याल की आबो हवा में जीते हैं.
बहुत उम्दा सोच है आपकी मेरे मित्र. बधाई.
achha kahte hain aap..nirantarta aur nikhar layegi isliye likhte rahe, kahte rahe...
kuldeep jee
bahut achha likhate haiN aap.
इस धरती पर आकर सबका, अपना कुछ खो जाता है,
कुछ रोते हैं, कुछ इस ग़म से अपनी ग़ज़ल सजाते हैं।
waah waah
aapkaa yah sher to bahut hee khoob hai.
Post a Comment