Monday, December 22, 2008

पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाये

पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाये 
हम चाँद से आज लौट आये 

दीवारें तो हर तरफ़ खड़ी हैं 
क्या हो गया मेहरबाँ साये 

जंगल की हवायें आ रही हैं 
काग़ज़ का ये शहर उड़ न जाये 

लैला ने नया जनम लिया है 
है कै़स कोई जो दिल लगाये 

है आज ज़मीन का गुसल-ए-सहत 
जिस दिल में हो जितना ख़ून लाये 

5 comments:

Vinay said...

भई मज़ा आ गया

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http://prajapativinay.blogspot.com

"अर्श" said...

बहोत बढ़िया भाई......

Bahadur Patel said...

wah bahut sundar hai. likhate rahen.

राजीव करूणानिधि said...

जंगल की हवायें आ रही हैं
काग़ज़ का ये शहर उड़ न जाये

बड़ा ही उम्दा शेर है. लिखते रहिये.
आपका दोस्त राजीव

Puja Upadhyay said...

khoobsoorat likha hai.