पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाये
हम चाँद से आज लौट आये
दीवारें तो हर तरफ़ खड़ी हैं
क्या हो गया मेहरबाँ साये
जंगल की हवायें आ रही हैं
काग़ज़ का ये शहर उड़ न जाये
लैला ने नया जनम लिया है
है कै़स कोई जो दिल लगाये
है आज ज़मीन का गुसल-ए-सहत
जिस दिल में हो जितना ख़ून लाये
5 comments:
भई मज़ा आ गया
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http://prajapativinay.blogspot.com
बहोत बढ़िया भाई......
wah bahut sundar hai. likhate rahen.
जंगल की हवायें आ रही हैं
काग़ज़ का ये शहर उड़ न जाये
बड़ा ही उम्दा शेर है. लिखते रहिये.
आपका दोस्त राजीव
khoobsoorat likha hai.
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