पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है
ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है
फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है
इस में तेरी ज़ुल्फ़ों की बे-रब्त कहानी है
एक ज़हन-ए-परेशाँ में वो फूल सा चेहरा है
पत्थर की हिफ़ाज़त में शीशे की जवानी है
क्यों चांदनी रातों में दरिया पे नहाते हो
सोये हुए पानी में क्या आग लगानी है
इस हौसला-ए-दिल पर हम ने भी कफ़न पहना
हँस कर कोई पूछेगा क्या जान गवानी है
रोने का असर दिल पर रह रह के बदलता है
आँसू कभी शीशा है आँसू कभी पानी है
ये शबनमी लहजा है आहिस्ता ग़ज़ल पढ़ना
तितली की कहानी है फूलों की ज़बानी है
2 comments:
ये शबनमी लहजा है आहिस्ता ग़ज़ल पढ़ना
तितली की कहानी है फूलों की ज़बानी है
bahut khub
regards
बहुत ही खूब शब्दों का अच्छा खासा भंडार हे आपके पास लेखनी में दम है आनंद आया आपको पढकर आपके लिए एक शेर खिदमते हाजिर है
जरा गौर फरमाएं
जीओ तो ऐसे जीओ पानी की तरह
जिधर से निकले रास्ता बन जाए
Post a Comment