Wednesday, December 3, 2008

पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है

पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है 
ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है 

फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है 
इस में तेरी ज़ुल्फ़ों की बे-रब्त कहानी है 

एक ज़हन-ए-परेशाँ में वो फूल सा चेहरा है 
पत्थर की हिफ़ाज़त में शीशे की जवानी है 

क्यों चांदनी रातों में दरिया पे नहाते हो 
सोये हुए पानी में क्या आग लगानी है 

इस हौसला-ए-दिल पर हम ने भी कफ़न पहना 
हँस कर कोई पूछेगा क्या जान गवानी है 

रोने का असर दिल पर रह रह के बदलता है 
आँसू कभी शीशा है आँसू कभी पानी है 

ये शबनमी लहजा है आहिस्ता ग़ज़ल पढ़ना 
तितली की कहानी है फूलों की ज़बानी है 

2 comments:

makrand said...

ये शबनमी लहजा है आहिस्ता ग़ज़ल पढ़ना
तितली की कहानी है फूलों की ज़बानी है
bahut khub
regards

मोहन वशिष्‍ठ said...

बहुत ही खूब शब्‍दों का अच्‍छा खासा भंडार हे आपके पास लेखनी में दम है आनंद आया आपको पढकर आपके लिए एक शेर खिदमते हाजिर है
जरा गौर फरमाएं


जीओ तो ऐसे जीओ पानी की तरह
जिधर से निकले रास्‍ता बन जाए