Sunday, November 2, 2008

हम इन्तेज़ार करेंगे तेरा क़यामत तक


हम इन्तेज़ार करेंगे तेरा क़यामत तक

ख़ुदा करे कि क़यामत हो और तू आए


यह इन्तेज़ार भी एक इम्तेहान होता है

इसी से इश्क का शोला जवान होता है

यह इन्तेज़ार सलामत हो और तू आए


बिछाए शौक़ के सजदे वफ़ा की राहों में

खड़े हैं दीद की हसरत लिए निगाहों में

कुबूल दिल की इबादत हो और तू आए


वो ख़ुशनसीब हो जिसको तू इन्तेख़ाब करे

ख़ुदा हमारी मौहब्बत को कामयाब करे

जवाँ सितार-ए-क़िस्मत हो और तू आए


ख़ुदा करे कि क़यामत हो और तू आए

1 comment:

अनुपम अग्रवाल said...

मनाते हैं यूं कि खुदा करे कि क़यामत हो
और तब भी दिल में बेवफा की चाहत हो