हमारे शौक़ की ये इन्तिहा थी
क़दम रखा कि मंज़िल रास्ता थी
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
मोहब्बत मर गई मुझको भी ग़म है
मेरे अच्छे दिनों की आशना थी
जिसे छू लूँ मैं वो हो जाये सोना
तुझे देखा तो जाना बद्दुआ थी
मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा है
मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी
शफ़ा=आराम, रोग से मुक्ति
8 comments:
बाईस बरसों का जवाँ,छवि मे बाईस दिन.
शौक मुहब्बत का करे,क्या रात क्या दिन.
क्या रात क्या दिन,रटन बस एक यही है.
मिले प्यार की छाँव, चाह बस एक यही है.
कह साधक कवि, तरसे भारत बरसों-बरसों.
बना रहे गूगल ऐसा ही बाईस बरसों
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wah jee wah , aap to sona bana denge. narayan narayan
मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा है
मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी
अच्छी लगी कविता आपकी. शुभकामनाएं और स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.
सच कहा आपने मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा है
मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी
मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा है
मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी
शुभकामनाएं और स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.
आपका स्वागत है|
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