Friday, October 31, 2008

कभी आंसू कभी खुशी बेची

कभी आंसू कभी खुशी बेची,
हम गरीबो ने बेकसी बेची,

चाँद साँसे खरीदने के लिए,
रोज़ थोडी सी ज़िंदगी बेची,

जब रुलाने लगे मुझे साये,
मैंने उकता के रौशनी बेची,

एक हम थे के बिक गए ख़ुद ही,
वरना दुनिया ने दोस्ती बेची,

सच ये है बेकार हमें ग़म होता है

सच ये है बेकार हमें ग़म होता है 
जो चाहा था दुनिया में कम होता है

ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम 
हमसे पूछो कैसा आलम होता है 

ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की 
जब होता है कोई हम-दम होता है 

ज़ख़्म तो हम ने इन आँखों से देखे हैं 
लोगों से सुनते हैं मरहम होता है 

ज़हन की शाख़ों पर अशार आ जाते हैं 
जब तेरी यादों का मौसम होता है 

हम तो बचपन में भी अकेले थे

हम तो बचपन में भी अकेले थे 
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे 

एक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के 
एक तरफ़ आँसूओं के रेले थे 

थीं सजी हसरतें दूकानों पर 
ज़िन्दगी के अजीब मेले थे 

आज ज़ेहन-ओ-दिल भूखों मरते हैं 
उन दिनों फ़ाके भी हमने झेले थे 

ख़ुदकुशी क्या ग़मों का हल बनती 
मौत के अपने भी सौ झमेले थे 

क्यूँ ज़िन्दगी की राह में

क्यूँ ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए 
इतने हुए करीब कि हम दूर हो गए 

ऐसा नहीं कि हमको कोई भी खुशी नहीं 
लेकिन ये ज़िन्दगी तो कोई ज़िन्दगी नहीं 
क्यों इसके फ़ैसले हमें मंज़ूर हो गए 

पाया तुम्हें तो हमको लगा तुमको खो दिया 
हम दिल पे रोए और ये दिल हम पे रो दिया 
पलकों से ख़्वाब क्यों गिरे क्यों चूर हो गए 

Tuesday, October 28, 2008

हमारे शौक़ की ये इन्तिहा थी

हमारे शौक़ की ये इन्तिहा थी
क़दम रखा कि मंज़िल रास्ता थी

कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी

मोहब्बत मर गई मुझको भी ग़म है
मेरे अच्छे दिनों की आशना थी

जिसे छू लूँ मैं वो हो जाये सोना
तुझे देखा तो जाना बद्दुआ थी

मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा है
मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी


शफ़ा=आराम, रोग से मुक्ति

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते 

वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते

जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन 
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते 

शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा 
जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते 

तूने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरना
हम कई सदियाँ तुझे घूम के देखा करते

लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो 
ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते

मौत तू एक कविता है,

मौत तू एक कविता है,
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको

डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुचे
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन

जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आऐ 
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको

मुझको यक़ीं है

मुझको यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं 
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं 

इक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे रिश्ता तोड़ लिया 
इक वो दिन दिन जब पेड़ की शाख़े बोझ हमारा सहती थीं

इक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का 
इक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं 

इक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी रूठी लगती हैं 
इक वो दिन जब 'आओ खेलें' सारी गलियाँ कहती थीं

इक ये दिन जब जागी रातें दीवारों को तकती हैं 
इक वो दिन जब शाख़ों की भी पलकें बोझल रहती थीं 

इक ये दिन जब ज़हन में सारी अय्यारी की बातें हैं 
इक वो दिन जब दिल में सारी भोली बातें रहती थीं 

इक ये घर जिस घर में मेरा साज़-ओ-सामाँ रहता है 
इक वो घर जिसमें मेरी बूढ़ी नानी रहती थीं 

तमन्‍ना फिर मचल जाए

तमन्‍ना फिर मचल जाए

अगर तुम मिलने आ जाओ।

यह मौसम ही बदल जाए

अगर तुम मिलने आ जाओ।

मुझे गम है कि मैने जिन्‍दगी में कुछ नहीं पाया

ये गम दिल से निकल जाए

अगर तुम मिलने आ जाओ।

नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे

ज़माना मुझसे जल जाए

अगर तुम मिलने आ जाओ।

ये दुनिया भर के झगड़े घर के किस्‍से काम की बातें

बला हर एक टल जाए

अगर तुम मिलने आ जाओ।

वो जो शायर था चुप सा रहता था

वो जो शायर था चुप सा रहता था
बहकी-बहकी सी बातें करता था
आँखें कानों पे रख के सुनता था 
गूँगी खामोशियों की आवाज़ें!
जमा करता था चाँद के साए
और गीली सी नूर की बूँदें
रूखे-रूखे से रात के पत्ते
ओक में भर के खरखराता था
वक़्त के इस घनेरे जंगल में
कच्चे-पक्के से लम्हे चुनता था
हाँ वही, वो अजीब सा शायर
रात को उठ के कोहनियों के बल
चाँद की ठोड़ी चूमा करता था

चाँद से गिर के मर गया है वो
लोग कहते हैं ख़ुदकुशी की है |

Saturday, October 25, 2008

रौशनी देते रहना

On the eve of Deepwali I am posting my poem रौशनी देते रहना,
which I have written for myself.

अपनी  राह  में फूल हो न हो फिर भी
दोस्तों की राहो के कांटे हटाते रहना

जिन्दगी को  ख्वाबों से सजाते रहना  
मुश्किलें आए तो भी सदा मुस्कराते रहना

अपना हाल-ऐ-इलम ना होने देना 
हालात को इस कदर छुपाते रखना 

ख्वाबों के सारे जनाजे डूब भी जायें
मगर ताबूतों को हमेशा संभाले रखना  

जब कभी तन्हाई आ घेरे तुझको  
अपने दिल को गेरों संग बतलाते रहना

गम उठाकर भी तू खुशिया देते रहना  
बस हर हाल में रौशनी देते रहना 

क्या बुरा है इस ज़माने में ऐ 'दीप'
ख़ुद जलकर भी रौशनी देते रहना